Bhagavad gita summary -
Geeta Updesh in Mahabharat
हिन्दी साहित्य के दो प्रमुख महाकाव्य हैं जिनमें से पहला है रामायण और दूसरा है श्रीमद्भभगवतगीता। यह हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथों में से भी एक हैं। आज हम आपसे अपने इस लेख में बात करेंगे श्रीमद्भगवत गीता में संग्रहित उपदेशों की।
महाभारत के मुताबिक श्री कृष्ण ने सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत में अपने शिष्य अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे, जिससे उस युद्ध को जीतना अर्जुन के लिए आसान हो गया था। गीता के उपदेशों को जीवन का सार या जीवन के उपदेश भी कहते हैं।
वहीं अगर हिन्दू धर्म के इस महान ग्रंथ गीता के उपदेशों को अपने जीवन में सम्मिलित कर लिया जाए तो मूर्ख व्यक्ति के जीवन का भी बेड़ा पार हो सकता है।
इसके साथ ही इस महान ग्रंथ गीता में जीवन की वास्तविकता और मनुष्य धर्म से जुड़े उपदेश दिए गए हैं। कई बार ऐसा होता है कि हमें अपनी समस्या का समाधान नहीं मिलता या फिर विपत्ति के समय हमें बहुत परेशान हो जाते हैं।
कई लोग तो गुस्से में अपना आपा खो बैठते हैं या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं, ऐसे में गीता में लिखे गए यह उपदेश हमारी सारी समस्याओं का चुटिकयों में हल कर देते हैं और हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं साथ ही सफल जीवन की प्रेरणा देते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश सुनाए थे जिसे सुनकर अर्जुन को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
वहीं यह गीता का उपदेश युद्ध भूमि में खड़े अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि यह सम्पूर्ण मानव जाति के लिए हैं और यह उपदेश एक तरीके से लोगों के जीवन में सफलता पाने के लिए अचूक मंत्र भी है।
आइए जानते हैं Geeta Saar के बारे में जो इंसान के भीतरी मन की उठापटक को शांत कर उसे सफल जीवन व्यतीत करने में सहायता करते हैं –
मानव शरीर अस्थायी और आत्मा स्थायी है:
गीता के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य के शरीर को महज एक कपड़े का टुकड़ा बताया है। अर्थात एक ऐसा कपड़ा जिसे आत्मा हर जन्म में बदलती है। अर्थात मानव शरीर, आत्मा का अस्थायी वस्त्र है, जिसे हर जन्म में बदला जाता है।
इसका आशय यह है कि हमें शरीर से नहीं उसकी आत्मा से व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए। जो लोग मनुष्य के शरीर से आर्कषित होते हैं या फिर मनुष्य के भीतरी मन को नहीं समझते हैं ऐसे लोगों के लिए गीता का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है।
जीवन का एक मात्र सत्य है वो है मृत्यु:
गीता सार में श्री कृष्ण ने कहा है कि हर इंसान के द्धारा जन्म-मरण के चक्र को जान लेना बेहद आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु। क्योंकि जिस इंसान ने इस दुनिया में जन्म लिया है।
उसे एक दिन इस संसार को छोड़ कर जाना ही है और यही इस दुनिया का अटल सत्य है। लेकिन इस बात से भी नहीं नकारा जा सकता है कि हर इंसान अपनी मौत से भयभीत रहता है।
अर्थात मनुष्य के जीवन की अटल सच्चाई से भयभीत होना, इंसान की वर्तमान खुशियों को भी खराब कर देता है। इसलिए किसी भी तरह का डर नहीं रखना चाहिए।
गुस्से पर काबू करना चाहिए क्योंकि क्रोध से व्यक्ति का नाश हो जाता है:
भगवान श्री कृष्ण में गीता के उपदेश में कहा है कि ‘क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि का विनाश होता है। वहीं जब बुद्धि काम नहीं करती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और व्यक्ति का नाश हो जाता है।
इस तरह हर व्यक्ति को अपने गुस्से पर काबू करना चाहिए, क्योंकि क्रोध भी भ्रम पैदा करता है। इंसान गुस्से में कई बार ऐसे काम करते हैं जिससे उन्हें काफी हानि पहुंचती है।
वहीं अगर क्रोध पर काबू नहीं किया गया तो इंसान कई गलत कदम उठा लेता है। वहीं जब क्रोध की भावना इंसान के मन में पैदा होती है तो हमारा मस्तिष्क भी सही और गलत के बीच अंतर करना छोड़ देता है, इसलिए इंसान को हमेशा क्रोध के हालातों से बचकर हमेशा शांत रहना चाहिए। क्योंकि गुस्से में लिया गया फैसला इंसान को गहरी क्षति पहुंचाता है।
व्यक्ति अपने कर्मों को नहीं छोड़ सकता है:
श्री कृष्ण ने Geeta Saar में बताया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्म को नहीं छोड़ सकता है अर्थात् जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे रहते हैं उन्हें उस मार्ग से हटाना ठीक नहीं है क्योंकि वे ज्ञानवादी नहीं बन सकते।
वहीं अगर उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों तरफ से भटक जाएंगे। और प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है लेकिन मन ही मन उसमे डूबा रहता है। अर्थात जिस तरह व्यक्ति का स्वभाव होता है वह उसी के अनूरुप अपने कर्म करता है।
मनुष्य को देखने का नजरिया:
गीता सार में मनुष्य को देखने के नजरिए पर भी संदेश दिया गया है, इसमें लिखा गया है जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है।
और जो अज्ञानी पुरुष होता है, उसे ज्ञान नहीं होने की वजह से वह हर किसी चीज को गलत नजरिए से देखता है।
इंसान को अपने मन को काबू में रखना चाहिए:
गीता सार में उन लोगों के लिए संदेश दिया गया है जो लोग अपने मन को काबू में नहीं रखते हैं क्योंकि ऐसे लोगों का मन इधऱ-उधर भटकता रहता है और उनके लिए वह शत्रु के समान काम करता है।
मन, व्यक्ति के मस्तिक पर भी गहरा प्रभाव डालता है जब व्यक्ति का मन सही होता है तो उसका मस्तिक भी सही तरीके से काम करता है।
खुद का आकलन करें:
गीता सार में यह भी उपदेश दिया गया है कि मनुष्य को पहले खुद का आकलन करना चाहिए और खुद की क्षमता को जानना चाहिए क्योंकि मनुष्य को अपने ‘आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर देना चाहिए। जब तक मनुष्य खुद के बारे में नहीं जानेगा तब तक उसका उद्धार नहीं हो सकता है।
मनुष्य को खुद पर विश्वास करना चाहिए:
श्रीमदभगवद गीता में श्री कृष्ण ने उपदेश दिया है कि हर मनुष्य को खुद पर पूरा भरोसा रखना चाहिए क्योंकि जो लोग खुद पर भरोसा करते हैं वह निश्चय ही सफलता हासिल करते हैं। वहीं इंसान जैसा विश्वास करता है वह वैसा ही बन जाता है।
अच्छे कर्म करें और फल की इच्छा ना करें:
जो लोग कर्म नहीं करते और पहले से ही परिणाम के बारे में सोचते हैं ऐसे लोगों के लिए गीता सार का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है।
इसमें श्री कृष्ण ने कहा है कि इंसान को अपने अच्छे कर्म करते रहना चाहिए और यह नहीं सोचना चाहिए कि इसका क्या परिणाम होगा क्योंकि कर्म का फल हर इंसान को मिलता है। इसलिए इंसान को इस तरह की चिंता को अपने मन में जगह नहीं देनी चाहिए कि उसके कर्म का फल क्या होगा या फिर किसी काम को करने के बाद वह खुश रहेंगे या नहीं।
अर्थात कर्म करने के दौरान इंसान को इसके परिणाम के बारे में बिल्कुल भी चिंता नहीं करना चाहिए और किसी भी काम को चिंता मुक्त होकर शुरु करना चाहिए।
मनुष्य की इंद्रियों का संयम ही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है:
जाहिर है कि मनुष्य के सुख और दुख में मन की स्थिति एक जैसी नहीं रहती है। सुख में मनुष्य ज्यादा उत्साहित हो जाता है और दुख में वह बेकाबू हो जाता है। इसलिए सुख और दुख दोनों में ही मनुष्य के मन की समान स्थिति हो इसे योग ही कहा जाता है।
वहीं जब मनुष्य सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके बिना फल की इच्छा के कोई काम करता है तो उस समय वह मनुष्य योग मे स्थित कहलाता है। और जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका मन ही उसका सबसे अच्छा मित्र बन जाता है, लेकिन जो मनुष्य अपने मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह मन ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है।
वहीं जो मनुष्य अपने अशांत मन को वश में कर लेते हैं, उनको परमात्मा की प्राप्ति होती है और जिस मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है उसके लिए सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी और मान-अपमान सब एक समान हो जाते हैं।
ऐसा मनुष्य स्थिर चित्त और इन्द्रियों को वश में करके ज्ञान द्वारा परमात्मा को प्राप्त करके हमेशा सन्तुष्ट रहता है।
खुद पर पूरा भरोसा रखे और अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातर प्रयास करें:
गीता सार के इस उपदेश को अगर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में पालन करे तो निश्चय ही वह एक सफल व्यक्ति बन सकता है। जो लोग पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करते हैं।
वह निश्चय ही अपने लक्ष्य को पा लेते हैं, लेकिन मनुष्य को अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार चिंतन करते रहना चाहिए।
तनाव से दूर रहने का संदेश:
भगवान श्री कृष्ण ने गीता सार में कहा है कि लोगों को तनाव से दूर रहना चाहिए क्योंकि तनाव इंसान को सफल होने से रोकता है।
अपना काम को प्राथमिकता दें और इसे पहले करें:
श्री मदभगवत गीता में श्री कृष्ण ने यह उपदेश दिया है कि अपने काम को पहले प्राथमिकता दें और पहले अपने काम को पूरा करने की कोशिश करें तभी दूसरे का काम करें क्योंकि जो लोग पहले अपने काम को नहीं करते और दूसरें का काम करते रहते हैं। वे लोग अक्सर परेशान रहते हैं।
लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान की विभूतियां हैं:
श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने यह भी उपदेश (Shri Krishna Updesh) दिया है कि सब एक ही भगवान की विभूतियां हैं। जो लोग भगवान के अलग-अलग रुपों की पूजा करते हैं और उनकी अलग-अलग शक्तियों में भरोसा रखते हैं।
ऐसे लोगों के लिए यह जान लेना बेहद जरूरी है कि सभी एक ही भगवान की विभूतियां हैं। मनुष्य के अच्छे गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। इसका सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सभी एक ही भगवान, की विभूतियां हैं। वहीं कोई पीपल को पूज रहा है। तो कोई पहाड़ को कोई नदी या समुद्र को।
असंख्य देवता हैं जिनका कोई अंत नहीं है। लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक देवी-देवताओं के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करते हैं लेकिन सभी एक ही भगवान की विभूतियां हैं।
जो लोग भगवान का सच्चे मन से ध्यान लगाते हैं वह पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं-
गीता सार में भगवान श्री कृष्ण ने यह भी उपदेश दिया है कि जो लोग सच्चे मन से भगवान की आराधना करते हैं और अपना पूरा ध्यान भगवान की भक्ति में लगाते हैं वे लोग पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं।
वहीं जो मनुष्य परमात्मा के सर्वव्यापी, अकल्पनीय, निराकार, अविनाशी, अचल स्थित स्वरूप की उपासना करता है और अपनी सभी इन्द्रियों को वश में करके, सभी परिस्थितियों में समान भाव से रहते हुए सभी प्राणीयों के हित में लगा रहता है उस पर ईश्वर की कृपा जरूर बरसती है।
आपको बता दें कि गीता सार में महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन अपने मन को मुझमें ही स्थिर कर और अपनी बुद्धि को मुझमें ही लगा। इस तरह तू निश्चित रूप से मुझमें ही हमेशा निवास करेगा।
वहीं अगर तू ऐसा नहीं कर सकता है, तो भक्ति-योग के अभ्यास द्वारा मुझे प्राप्त करने की इच्छा पैदा कर सकता है। इस तरह तू मेरे लिये कर्मों को करता हुआ मेरी प्राप्ति रूपी परम-सिद्धि को प्राप्त करेगा।
अपने काम को मन लगाकर करें और अपने काम में खुशी खोजें:
जो लोग अपने काम को मन लगाकर करते हैं और अपने काम में खुशी ढूंढ लेते हैं वे लोग निश्चत ही सफलता प्राप्त करते हैं।
वहीं दूसरी तरफ कई लोग ऐसे भी होते हैं जो किसी काम को बोझिल समझकर उस काम को सिर्फ निपटाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग किसी काम को ढ़ंग से नहीं कर पाते हैं और अपने जीवन में पीछे रह जाते हैं।
‘किसी भी तरह की अधिकता इंसान के लिए बन सकती है बड़ा खतरा:
गीता सार में श्री कृष्ण ने यह बात कही है कि इंसान के लिए किसी भी तरह की अधिकता घातक साबित हो सकती है। जिस तरह संबंधों में कड़वाहट हो या फिर मधुरता, खुशी हो या गम, हमें कभी भी “अति” नहीं करनी चाहिए।
जीवन में संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। जब तक मनुष्य के जीवन में संतुलन नहीं रहेगा वह सुख से अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकेगा अर्थात मनुष्य को जरूरत से ज्यादा कोई भी चीज करने से बचना चाहिए और अपनी जिंदगी में संतुलन बनाकर रखना चाहिए।
स्वार्थी नहीं बनें:
श्री कृष्ण ने गीता सार में उन लोगों के लिए इस उपदेश के माध्यम से बड़ी सीख दी है जो लोग दूसरी की भलाई पर ध्यान नहीं देते और सिर्फ अपना मतलब साधने में लगे रहते हैं उन लोगों का कभी भला नहीं होता।
आपको बता दें कि इंसान का स्वार्थ उसे अन्य लोगों से दूर ले जाकर नकारात्मक हालातों की तरफ धकेलता है। जिसके चलते व्यक्ति अकेला रह जाता है। वहीं गीता में यह भी कहा गया है कि स्वार्थ शीशे में फैली धूल की तरह है, जिसकी वजह से व्यक्ति अपना प्रतिबिंब ही नहीं देख पाता।
वहीं अगर आप चाहते हैं कि आप भी अपना जीवन खुशीपूर्वक व्यतीत करें तो इसके लिए यह जरूरी है कि, आप अपने स्वार्थ को कभी अपने पास नहीं आने दें क्योंकि स्वार्थी मनुष्य दोस्ती भी सिर्फ अपना स्वार्थ निकालने के लिए करते हैं।
ईश्वर हमेशा मनुष्य का साथ देता है:
वहीं इंसान तो बस ईश्वर की हाथ की एक कठपुतली है, इसलिए इंसान को कभी अपने भविष्य या फिर अतीत की चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हर विकट परस्थिति में ईश्वर इंसान का साथ देता है और उसे मुश्किल से बाहर निकालता है इसलिए हम सभी को ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।
संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है:
जिन लोगों में शक या संदेह की आदत होती है या फिर जो लोग जरूरत से ज्यादा शक करते हैं। ऐसे लोगों के लिए श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि पूर्ण सत्य की खोज या फिर संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है।
क्योंकि शक करना एक ऐसी आदत है जो कि मजबूत से मजबूत रिश्ते को भी खोखला कर देती है। वहीं जिज्ञासा होना भी लाजमी है लेकिन पूरी तरह सत्य की खोज या फिर संदेह ही इंसान के दुख का कारण बनती है और शक करने वाले इंसान बाद में इसका पश्चयाचाप करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण के द्धारा श्री मदभगवतगीता में जो भी उपदेश दिए हैं अगर इन उपदेशों को लोग अपने जीवन में उतार लें तो वे निश्चत ही अपने जीवन में सफल हो सकते हैं। गीता सार के ये उपदेश वाकई एक सफल जीवन के निर्माण करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
Geeta Updesh -
• क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
• जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
• तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
• खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
• परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
• न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
• तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
• जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।
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