बादलो  की धुंध के चलते हुई रेडियोधर्मी तरंगो की पहचान ➨


विज्ञान संबंधी ज्यादातर खोजो की तरह रेडियोधर्मिता की खोज भी अचानक हुई | वर्ष 1896 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक हैनरी पेरिस में स्थित अपनी प्रोगाशाला में फ्लोरोसेंट खनिजो का इस्तेमाल करते हुए कुछ समय पहले खोजो गई एक्स-किरणों का अध्ययन कर रहे थे |

एक प्रयोग के तहत उन्होंने एक काले कागज में लिपटी फोटोग्राफिक प्लेट के ऊपर पोटेशियम यूरेनाइल सल्फेट खनिज का एक टुकड़ा रखते हुए इसे ऐसी जगह पर रखा , जहा से सूर्य की किरणे आ सकती थी | उनका मानना था की युरेनियम सूर्य की किरणों से ऊर्जा अवशिषित करेगा , जिसका उत्सर्जन  एक्स-रे के रूप में होगा | हालाँकि उन दिनों पेरिस में बादलो की धुंध छाई थी |

जिस वजह से बैकेरल का यह प्रयोग नाकाम हो गया | इसके बावजूद फोटोग्राफिक प्लेट डवलप करने पर उन्हें कुछ स्पष्ट छविया नजर आई , जो इस बात का प्रमाण थ की युरेनियम से स्वत: विकिरण निकलता है | आगे अध्ययन करने पर बैकेरल ने पाया की युरेनियम से निकलने वाली ये तरंगे एक्स-रे नहीं है क्योंकी एक्स-रे की प्रकृति उदासीन होती है , जबकि ये नई तरंगे चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित पाई गई | इस तरह रेडियोधर्मी तरंगो की खोज हुई |

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